...और इन दिनों जब गूगल मोगली पर फिदा है न्यायपालिका कह रही है- आदिवासियों को जंगल छोड़ना होगा! वह भी बारिश से पहले तो ए ढेंचुआ बारिश में आदिवासी कहां जाएंगे? इसपर लोकतंत्र चुप है! तो ए मैना सवाल यह भी है कि कौन फिर से गा रहा है वही पुरखा गीत- अबुआ दिसुम, अबुआ राइज! ए दीदी, ए दादा हम सब ही तो गा रहे हैं- जल, जंगल, जमीन हमारा है!! हां हम सब ही तो गा रहे हैं... हम सब ही तो गा रहे हैं... झारखंड की प्रसिद्ध कवियित्री वंदना टेटे अपना गुस्सा और दुख ठीक उस वक्त फेसबुक पर उड़ेल रही थीं, जब चर्चा-ए-आम थी कि देशभर के लगभग 44 लाख आदिवासियों को उनके ही जंगल से बेदखल कर दिया जाएगा. क्योंकि जिस जगह वह सालों से रह रहे हैं, उस जमीन के कागजात उनके पास नहीं हैं, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट यह मानता है कि ये आदिवासी जंगल के इन हिस्सों पर कब्जा जमाए बैठे हैं. 21 फरवरी को दिए आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने 16 राज्यों को कहा है कि जिन परिवारों के वनभूमि स्वामित्व के दावों को खारिज कर दिया गया था, उन्हें राज्यों द्वारा इस मामले की अगली सुनवाई (27 जुलाई) से पहले तक बेदखल कर देना है. झारखंड के खूंटी जिले के हेंबरोम गांव क...